'काका, आपने मुझे पहचाना'... 51 वर्षों बाद अपने गांव पहुंचे स्वामी विश्वज्योति
काका, आपने मुझे पहचाना...? भगवा वस्त्रधारी व्यक्ति ने जब गांव के एक बुजुर्ग से अपने विषय में पूछा तब उन्होंने न में सिर हिलाया। बुजुर्ग ही नहीं, गांव के अधिकांश लोग इन्हें नहीं पहचान पा रहे थे। 16 वर्ष की आयु में गांव छोड़कर आश्रमों में भटकने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर योग प्रशिक्षक के रूप में विख्यात हीरालाल कश्यप अब स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के नाम से पहचाने जाते हैं। वे पूरे 51 वर्षों के पश्चात अपने गांव मोदे लौटे तो बुजुर्गों से आशीष लेने लगे। उनकी ख्याति सुन आसपास के गांवों के लोग भी उनका सानिध्य पाने मोदे गांव आए। यह है योग गुरु की कहानी योग को बढ़ावा देने और आश्रम में सेवा का जुनून नगरी के ग्राम मोदे निवासी हीरालाल कश्यप में इस कदर हावी हुआ कि उन्होंने घर छोड़कर आश्रम में शरण ले ली। फिर घर की ओर कभी मुड़कर नहीं देखा, बल्कि गंगा नदी किनारे के आश्रमों में जीवन बिताते हुए योग की शिक्षा देने लगे। केवल 16 वर्ष की आयु में घर छोड़ने वाले हीरालाल की पहचान अब योग गुरु के रूप में है। उन्हें स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के नाम से जाना जाता है। वे 51 वर्षों के बाद अब गांव पहुंचे तो ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया। गांव वालों ने किया स्‍वागत गांव आने पर मोदे के अलावा सांकरा व घठुला में भी ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया। उनके परिवार में पांच भाई में से दो भाई गोविंद कश्यप व सुरेश कश्यप उनकी सेवा कर रहे है। स्वागत करने वालों में डा रुद्र कश्यप, डा राजू सोम, रोमेस कश्यप, डारविन कश्यप, नवल कश्यप, श्रद्धा सोम, रीतु सूर्यवंशी, गीता देवी, वंदना कश्यप ने स्वागत किया।